एक बार एक व्यक्ति लम्बी यात्रा करते हुए कही जा रहा था। अचानक जिस रास्ते से वह जा रहा था उस रास्ते में जंगल पड़ा। तब वह जंगल से होकर गुजरने लगा। रास्ते में अचानक उसे एक सुन्दर स्त्री मिली। वह व्यक्ति रुक गया और उस स्त्री के पास गया और उससे उसका परिचय पूछा। स्त्री ने कहा मेरा नाम – बुद्धि है। उस व्यक्ति ने पुनः पूछा – आप रहती कहाँ है। उस स्त्री ने कहा – मैं लोगों के मस्तिष्क ( दिमाग ) में रहती हूँ। यह कहकर वह स्त्री अंतर्ध्यान हो गयी। थोड़ी देर सोंचकर व्यक्ति फिर से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए आगे बढ़ गया। वह थोड़ी दूर गया ही था की आगे एक और सुन्दर सी स्त्री उसे दिख गयी। जो की उसके सामान वाले रास्ते पर ही जा रही थी। उस स्त्री को देखकर वह व्यक्ति उसके पास गया और उसका भी परिचय पूछा। उस दूसरी स्त्री ने कहा मेरा नाम – लज्जा है। उस व्यक्ति ने उस दूसरी स्त्री से भी पूछा – आप रहती कहाँ है। उस दूसरे स्त्री ने कहा – मैं लोगों के नेत्रों ( आँख ) में रहती हूँ। यह कहकर वह स्त्री भी अंतर्ध्यान हो गयी। उस व्यक्ति को थोड़ा अजीब लगा लेकिन वह सब कुछ छोड़कर आगे बढ़ गया। वह चला जा रहा था अचानक उसे एक स्त्री और मिली। वह व्यक्ति उसके पास भी गया और वही प्रश्न पूछा जो उसने बाकि दोनों से पूछा था। आप कौन है , और कहाँ रहती है। उस तीसरी स्त्री ने कहा मेरा नाम – मर्यादा है और मैं लोगों के जीभ में रहती हूँ। और सभी की भांति वह स्त्री भी गायब हो गयी। और वह व्यक्ति भी आगे बढ़ गया। तभी रास्ते में उसे एक और स्त्री मिली। सभी की तरह उस व्यक्ति ने उस स्त्री से भी वही सवाल किया। और उसका नाम और रहने का स्थान पूछा – तो उस चौथी स्त्री ने कहा – उसका नाम दया है। और मैं लोगो के ह्रदय में रहती हूँ। और इतना कहकर चौथी स्त्री भी अदृश्य हो गयी। अब वह व्यक्ति फिर आगे बढ़ गया। आगे जाकर थोड़ा आराम किया और आराम के पश्चात् वह व्यक्ति फिर से आगे बढ़ गया।
अचानक उसे आगे एक और जंगल मिला वह उस जंगल से होकर आगे बढ़ रहा था। तभी उसे एक लम्बा चौड़ा , काले रंग का पुरुष दिखाई दिया जिसकी आँखे ज्वालामुखी की तरह लाल थी – उस व्यक्ति से उस काले रंग का पुरुष से पूछा – श्रीमान आप कौन है। और कहाँ रहते है? उस पुरुष ने उत्तर दिया – मैं क्रोध हूँ। और लोगो का मस्तिष्क ( दिमाग ) ही मेरा निवास स्थान है। उस व्यक्ति ने कहा – लेकिन वहां तो बुद्धि रहती है। उस पुरुष ने कहा – जब मैं लोगो का मस्तिष्क ( दिमाग ) में आता हूँ तो बुद्धि वहां से प्रस्थान कर जाती है। यह कहकर वह पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। वह व्यक्ति आगे बढ़ गया तभी उसे एक और पुरुष मिला – जो की पूरा नग्न अवस्था में था। व्यक्ति ने उस दूसरे पुरुष से पूछा की – श्रीमान आप कौन है। और कहाँ रहते है, और नग्न अवस्था में क्यों है? उस पुरुष ने उत्तर दिया – मेरा नाम लोभ है और लोगो की आँखे ही मेरा निवास स्थान है। उस व्यक्ति ने कहा – लेकिन आँखों में तो लज्जा रहती है। उस पुरुष ने कहा – जब लोगो की आँखों में मैं आता हु न तो लज्जा वह से तुरंत चली जाती है। यह कहकर वह व्यक्ति भी आगे बढ़ गया। आगे उसे एक और व्यक्ति के दर्शन हुए जो की पतला लेकिन बहुत ही लम्बा था। उस व्यक्ति ने उस तीसरे पुरुष से भी पूछा की – हे पुरुष आप कौन है। और आपका स्थान कहा है। उस पुरुष ने कहा – मेरा नाम निष्ठुर है और लोगो की जीभ की मेरा निवास स्थान है। और मेरें साथ मेरे भाई अविनय, अभद्रता, ग्रात्यता, अशिष्टता, गँवारपन, उजड्डपन, वन्याचरण, बर्बरता, निष्ठुरता, गुस्ताखी, घृष्टता, प्रगल्भता, ढिठाई, आदि भी रहते है। उस व्यक्ति ने कहा की – लेकिन जीभ पर तो मर्यादा का स्थान है। तो उस ने कहा – तुम सत्य कह रहे हो। लेकिन हम और हमारे भाई लोगो के जीभ पर मर्यादा को रहने ही नहीं देते है। यह कहकर वह पुरुष भी गायब हो गया। अब वह व्यक्ति फिर आगे बढ़ गया। और अचानक उसे एक और पुरुष मिला – सभी की भांति उस व्यक्ति ने उस चौथे पुरुष से भी पूछा की – आप कौन है और आपका स्थन कहा है। उस पुरुष ने कहा – मेरा नाम क्रूर है। और मनुष्य का ह्रदय ही मेरा निवास स्थान है। उस व्यक्ति ने कहा – लेकिन वहां तो दया रहती है। उस पुरुष ने कहा – हाँ , लेकिन जब मैं ह्रदय में आता हूँ तो दया वहां से प्रस्थान कर जाती हैं। ह कहकर वह चौथा पुरुष भी गायब हो गया।
अब उस व्यक्ति को सारी बात समझ आ गयी है। वह आगे बढ़ गया। तो दोस्तों जीवन में आप कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ। किन्तु अपने अंदर से दया , लज्जा , मर्यादा , और बुद्धि का नाश न होने दीजिये। इसी में प्रत्येक की भलाई है।
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